ना Increment की
फिकर,
ना escalation का
डर,
ना ईमेलों पे सवाल
,
ना सवालों से बवाल
,
ना appraisal के
लिए नाइट ,
ना promotion के
लिए फाइट ,
ना थी laptop की
तड़क-भड़क,
ना थी वहाँ चापलूसी
की सड़क,
सच्चा मासूम प्यार
तब बहुत सारा था
वो बचपन बहुत ही
प्यारा था !!!!!
काम के
Frustration का असर मुझमें भी आया है,
बे-वजह हस्ते
खेलते बच्चो को धमकाया है,
३० तारीख के
इंतज़ार में पूरा महीना बिताया है ,
लोन ले लेके सपनों
का आँगन बनाया है
माँ के पराठे को
छोडकर Pizza को अपनाया है ,
घर को धर्मशाला ,ऑफिस
को घर बनाया है ,
तब रोने के लिए
कंधो का सहारा था ,
वो बचपन बहुत ही
प्यारा था !!!!!
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