बिक रही
हूँ किसी बाजार में , टूट रही हूँ किसी के अत्याचार में ,
निर्भया गुडिया
बन छप रही हूँ , रोज किसी अखबार में |
कभी सती औए
कभी देहज के नाम मुझे लोगोंने जलाया है ,
महाभारत और
रामायण होने की जड़ भी मुझे बताया है ||
अपने अपनों
और सपनों के आँगन छोड कर नया घर बनाती हूँ,
सब त्यागकर
भी मैं कुलक्षणी कुलटा के नामो से नवाजी जाती हूँ |||
कभी देवी,
कभी डायन और कभी पारवती और सीता बनाया
मैंने भी
बेटी बहू बहन माँ बन हर रिश्ते को है निभाया ||||
हर घडी
जीना है मुश्किल , हर पल मौत की शया पर लेटी हूँ
हर मुश्किल
से लड़ती डटकर में , मैं भारत की बेटी हूँ !!!!!
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